महंगाई - 5.8 लाख करोड़ की लूट


महंगाई सिर्फ हमारे देश में नहीं है, सारी दुनिया में है। हमारी सरकार इस पर काबू पाने की भरसक कोशिश कर रही है। बीते दो साल में चौथी बार प्रेस से रूबरू हुए प्रधानमंत्री तो न चाहते हुए भी उन्हें महंगाई के सवाल का सामना करना पड़ा। इससे पहले इस सच का सामना उन्होंने सात महीने पहले किया था। दिसंबर बीता, जून भी बीत जाएगा लेकिन महंगाई के साथ परेशानी ये है कि वो बयानों से कम नहीं होती, प्रधानमंत्री के बयानों से भी नहीं। अगर होती तो दिसंबर के बयान के बाद अब तक ये पांच फीसदी से बढ़कर 9 फीसदी पर नहीं पहुंच गई होती। हकीकत ये है कि जिस देश में 84 करोड़ लोग बीस रुपये से कम पर हर रोज गुजर बसर करते हैं उस गरीब देश में सिर्फ बीते तीन साल में महंगाई 5 लाख 80 हजार करोड़ निगल चुकी है। ये हम नहीं कह रहे, ये कहना है देश की नामचीन रिसर्च फर्म क्रिसील का।
क्रिसिल के मुताबिक आसमान छूती महंगाई की वजह से अवाम पर 2008 में 45 हजार करोड़ का बोझ पड़ा। इसी तरह महंगाई की वजह से 2009 में 1 लाख 60 हजार करोड़ का अघोषित टैक्स अवाम को चुकाना पड़ा। 2010 में ये रकम बढ़कर 3 लाख 70 हजार करोड़ हो गई। सरकार को पता हो न हो, महज तीन साल में महंगाई आम लोगों की गाढ़ी कमाई में से 5 लाख 80 हजार करोड़ रुपये निगल चुकी है। 2G घोटाले के जिस 1.7 लाख करोड़ की रकम ने सुप्रीम कोर्ट को भी हैरान कर रखा है, ये रकम उसके तीन गुने से भी कहीं ज्यादा है। ये दरअसल उस रकम की लगभग आधी है जो इस साल सरकार ने समूचे देश की तरक्की के लिए बजट में प्रावधान किया है। यही नहीं अगर आप खाद से लेकर केरोसीन और डीजल जैसे तमाम सब्सिडी को जोड़ लें तब भी ये रकम गरीबों की जेब से निकले 5.8 लाख करोड़ की इस रकम की एक चौथाई से ज्यादा नहीं होगी।
ऐसा नहीं कि बीते तीन सालों में सरकार ने कीमत में कमी लाने की कोशिश नहीं की, आपने गौर किया हो या नहीं लेकिन बीते तीन सालों में एसी, फ्रीज और वाशिंग मशीन सस्ते हुए हैं। अब ये परेशानी गरीबों की है कि वो इनका इस्तेमाल नहीं करते। क्रिसिल की रिपोर्ट INFLATION HURTS के मुताबिक 2005 से सात तक महंगाई की दर पांच फीसदी के करीब थी, लेकिन बीते तीन साल में ये बढ़कर 8 फीसदी के करीब हो गई। नतीजा ये हुआ कि जरुरी चीजें खरीदने की आम आदमी की ताकत तो कम हुई है देश के सबसे गरीब लोगों की जेब से 5 लाख 80 हजार करोड़ निकल गए। ये रिपोर्ट बताती है कि बीते तीन साल में जहां चीजों की कीमत में बढ़त एक समान नहीं रही, वहीं सबसे ज्यादा जरुरी चीजों की कीमतों में बेहिसाब इजाफा हुआ। सबसे ज्यादा तेजी आई अनाज की कीमत में। अनाज के अलावा जहां बाकी चीजों की कीमत में औसतन 5.7 फीसदी का सालाना इजाफा हुआ वहीं बीते तीन साल में खाद्य पदार्थों की कीमत में इससे तकरीबन दोगुना यानी 11.6 फीसदी का इजाफा हुआ। अगर 2008-09 से 2010-11 के बीच कीमत में इजाफा 8% की बजाए अगर इससे पहले के तीन सालों की तरह 5% की दर से हुआ होता तो लोगों की जेब पर 5.8 लाख करोड़ का बोझ न पड़ा होता।
आपने ये तो जान लिया कि महंगाई पर लगाम लगाने में सरकार की नाकामी की वजह से आम लोगों को 5 लाख 80 हजार करोड़ की चपत लगी, अब ये भी जान लीजिए कि ये रकम गए किस मद में। होलसेल प्राइस इन्डेक्स में शामिल 676 सामानों में से 146 की कीमतें गिरीं, 214 की कीमत में 4 फीसदी का मामूली इजाफा हुआ। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स जैसे टीवी, फ्रीज, वाशिंग मशीन और एसी की कीमत में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई, लेकिन रोजमर्रा के काम की और जरुरी सामान जैसे खाने की चीजों की कीमतों में तेज इजाफा हुआ। इस दौरान दूध के दाम तीन गुना बढ़े। फलों और सब्जियों की कीमत सालाना 10 फीसदी की दर से बढ़ी तो मांस, मछली और अंडे कीकीमत में 23.6 फीसदी का इजाफा हुआ। क्रिसिल की रिपोर्ट से ये साफ है कि केंद्र और राज्य सरकार जरुरी चीजों की कीमत पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं, लेकिन क्या सरकार के पास महंगाई के लिए कोई सफाई नहीं। साफ है कि केंद्र को राज्य से और राज्यों को केंद्र से शिकायत है। फिर भी ये सवाल अपनी जगह कायम है कि ऐसा क्यों है कि हमारे यहां केंद्र से लेकर राज्य तक सरकारें है, योजना आयोग है, फाइनांस कमीशन है, फिर ऐसा क्यों है कि एसी और फ्रीज की कीमतें तो साल दर साल कम होती जा रही हैं, लेकिन गरीब का निवाला हर दिन महंगा होता जा रहा है।
24 जून को जब सरकार ने डीजल की कीमत में तीन रुपये का इजाफा किया तब सरकार ने ये दावा किया था कि ये इजाफा बेहद मामूली है जिससे आम लोगों पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा। अब देखिए इस मामूली इजाफे का गैरमामूली नतीजा। डीजल के दाम बढ़े अभी हफ्ता भी नहीं बीता है और सब्जियां आम आदमी की पहुंच से दूर हो गई हैं। टमाटर 5 से 50 पर पहुंच चुका है तो मटर 40 से अस्सी पर। शिमला मिर्च की हाफ सेंचुरी और लहसुन की सेंचुरी से लोग हलकान हो रहे हैं। यहां तक कि आलू और प्याज भी पचास फीसदी महंगे हो गए हैं। जयपाल रेड्डी को मालूम हो ना हो, क्रिसिल की रिपोर्ट की तस्दीक भारत सरकार भी कर रही है। भारत सरकार के कंज्यूमर्स अफेयर्स मिनिस्ट्री के प्राइस मॉनिटरिंग सेल के आंकड़े बताते हैं कि देश के और जगहों की तरह राजधानी दिल्ली में भी बीते तीन सालों में चावल से लेकर दाल, प्याज, चीनी, चायपत्ती यहां तक कि प्याज और नमक भी महंगा हो गया है। चाय पत्ती, चीनी और दूध करीब करीब दोगुना महंगा हो गया है तो गरीबों की थाली को अब प्याज और नमक भी मयस्सर नहीं। हकीकत यह है कि सिर्फ सब्जियां नहीं बीते बारह महीनों में जरुरत की हर चीज की कीमत में बेतहाशा इजाफा हुआ है। अब आलम यह है कि जान सस्ती है पर जीना महंगा हो गया है। सिर्फ 9 महीने में सरकार ने पेट्रोल की कीमत 9 बार बढ़ाई है।
नतीजा ये कि पिछले साल इस वक्त जो पेट्रोल दिल्ली में 48 रुपये लीटर मिल रहा था अब इसकी कीमत 25 रुपये ज्यादा यानी 63 रुपये 37 पैसे हो चुकी है। बच्चों की सेहत के लिए सबसे जरुरी चीज दूध की कीमत 28 से 36 पर पहुंच चुकी है। स्कूल में बच्चों को तालीम दिलाने में गार्जियन्स के पसीने छूट रहे हैं। एडमिशन फी से लेकर बस फी, डेवलपमेंट चार्ज सेलेकर ट्यूशन फी के नाम पर स्कूलों की फीस में कम से कम 20 फीसदी का इजाफा हो गया है। अगर आप अपने बच्चे को डॉक्टर या इंजीनियर बनाने की हसरत रखते हैं और उसे कोचिंग दिलाना चाहते हैं तो भूल जाइए, क्योंकि दिल्ली के नारायणा आईआईटी एकेडमी में इंजीनियरिंग की कोचिंग फी 1लाख 20 हजार से बढ़कर 1लाख 42 हजार हो चुकी है तो मेडिकल की कोचिंग करवाने वाले आकाश इंस्टीट्यूट में रेगुलर कोचिंग की फीस अब 1लाख 25 हजार से बढ़कर 1लाख 45 हजार पर पहुंच चुकी है। बीते साल भर में बच्चों की तालीम तो महंगी हुई, बुजुर्गों का इलाज भी कम महंगा नहीं हुआ। मेडिकल इंश्योरेंस की प्रीमियम तो तीन गुना बढ़ ही चुकी है, पिछले साल मई से अब तक जरुरी दवाओं की कीमत में कम से कम 17 फीसदी का इजाफा हो चुका है। 5 लाख 80 हजार करोड़ का सवाल यह है कि अगर सरकार गरीब को सस्ता निवाला मुहैया नहीं करा सकती, सस्ती तालीम और सस्ता इलाज मुहैया नहीं करा सकती तो उसके होने का मतलब क्या है ?
सात साल में चौथी बार प्रधानमंत्री प्रेस से रूबरू हुए तो उन्होंने साफ किया कि महंगाई दुनिया भर में है और उनकी सरकार इस पर काबू पाने की हरचंद कोशिश कर रही है। उनकी शिकायत बीजेपी से है कि वो संसद में सहयोग नहीं करती, उन्हें शिकायत मीडिया से है कि वो पुलिस, वकील और जज का किरदार निभा रही है। इस बैठक में प्रधानमंत्री ने जो कहा वो तो अहम हैं लेकिन कुछ ऐसा भी है जो इस बैठक में उन्होंने नहीं कहा वो भी कम अहम नहीं। प्रधानमंत्री ने देश को ये नहीं बताया कि इस साल जनवरी से मार्च के बीच 2 लाख 66 हजार 453 करोड़ के नए प्रोजेक्ट्स शुरू हुए हैं जो बीते सात तिमाही में सबसे कम है। उन्होंने नहीं बताया कि इसी दौरान 52 हजार 849 करोड़ के प्रोजेक्ट बंद हो गए जो बीते आठ तिमाही में सबसे ज्यादा है। उन्होंने देश को ये भी नहीं बताया कि एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 24 फीसदी की जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। रुपये के नजरिए से ये नुकसान लगभग एक लाख करोड़ का है। उन्होंने ये नहीं बताया कि देश की जिस शानदार तरक्की के कसीदे दुनिया भर में पढ़े जा रहे हैं उस आर्थिक सुधार पर अब ब्रेक लग गया है और ये आंकड़े हमारे नहीं, ये आंकड़े हैं रिजर्व बैंक के जिसके वो तीन साल गवर्नर रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने प्रेस के साथ मुलाकात में ये साफ कर दिया कि वित्त मंत्रालय में कोई जासूसी नहीं हुई है, लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि गैस, डीजल और केरोसिन की मार से बेहाल लोगों को अपने बच्चों को पेशेवर तालीम दिलाने का ख्याल अब छोड़ देना चाहिए क्योंकि सरकार आईआईटी की फीस 50 हजार से बढ़ाकर ढाई लाख करने का मन बना चुकी है। उन्होंने ये भी नहीं बताया कि सरकार एनआईटी यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी और सेंट्रल यूनिवर्सिटीज की फीस में भी बढोतरी का इरादा रखती है। जब प्रधानमंत्री सरकार के सरोकार और संसद में विपक्ष के किरदार के बारे में इतना कुछ बता रहे थे तकरीबन उसी वक्त उत्तर पूर्व में त्रिपुरा से देश भर में गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले लोगों की जनगणना का काम शुरू हुआ, लेकिन प्रधानमंत्री ने प्रेस को ये बताना जरुरी नहीं समझा कि गरीबों की गिनती और गरीबी की रेखा को मापने का नया सरकारी पैमाना होगा क्या। देश और अवाम को प्रधानमंत्री के इस बयान से बहुत राहत मिली है कि वो किसी की कठपुतली नहीं हैं, लेकिन क्या अपने प्रधानमंत्री से हम सिर्फ इतने की ही उम्मीद रख सकते हैं।
पिछले दो सालों से महंगाई लोगों को इतना रुला रही है कि अब तो बॉलीवुड में इस पर गाने भी बनने लगे हैं। देश में महंगाई दर अभी भी नौ परसेंट के ऊपर बनी हुई है और सरकार को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में ये छह परसेंट के नीचे पहुंच जाएगी। हालांकि सरकार पिछले दो सालों से ये बयान देते आ रही है लेकिन ऐसा हुआ नहीं। लेकिन जब कभी महंगाई के ताजा आंकड़े आते हैं तो सरकार एक दम से लोगों को भरोसा जुटाने पहुंच जाती है कि अगले दो से तीन महीने में महंगाई को तो देश से उखाड़ कर फेंक ही दिया जाएगा। कभी प्रधानमंत्री मनमोन सिंह तो कभी वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी। लोगों को अपने बयानों से ढांढस बंधाते रहते हैं। इसके बावजूद महंगाई में गिरावट नहीं आई और न ही आएगी। महंगाई फिलहाल आपका पीछा छोड़ने वाली नहीं है। हम आपको बताते हैं चार वजह जिसके चलते महंगाई कम नहीं होगी। भारत में खाने पीने की चीजों की उत्पादन घटी है। ये 1961 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। वहीं अनाज का उत्पादन प्रति व्यक्ति अब 180 किलो ही रह गया है। पिछले दशक में जब जनसंख्या 18 परसेंट की दर से बढ़ी तब हमारे देश में अनाज का उत्पादन 11 परसेंट की दर से भी नहीं बढ़ा है।
भारत में सैलरी 10 से 13 परसेंट की दर से बढ़ रही है। आमदनी बढ़ने से लोगों के खर्च बढ़ेंगे। मांग बढ़ेगी तो महंगाई एक बार फिर बढ़ने का खतरा पैदा हो जाता है। वहीं सरकार की योजना NREGA से गांवों में लोगों को नौकरी के अवसर तो मिले हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में इससे मांग में तेजी आई है और ये भी महंगाई दर को बढ़ाने में मदद कर रही है। यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि भारत में कमॉडिटी की सट्टेबाजी बढ़ी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कमॉडिटी की कीमत बढ़ाने में सटोरियों का बहुत बड़ा हाथ है। वहीं वायदा कारोबार के कारण भी अनाज की कीमतों में उछाल देखा गया है। वहीं कालाबाजारियों ने अनाज के अलावा फल और सब्जियों के दाम इतना बढ़ाए कि ये अब आम आदमी की थाली से ही गायब हो गए हैं। कच्चे तेल की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। इसके कारण बायोफ्यूल पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए खेती की जमीन पर अब जैट्रोफा जैसे पौधों को उगाया जा रहा है। इसके कारण भी अनाज का उत्पादन घटा है और महंगाई बढ़ी है। तो इस साल भी थोड़ा संभल के खर्च कीजिएगा। क्योंकि लाख कोशिशें और बयानबाजी के बावजूद इस साल भी महंगाई डायन आपका पीछा नहीं छोड़ने वाली है। वहीं पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमत भी इस साल आपको रुलाने वाली है। तो एक ओर जहां सब्जी महंगी होगी तो दूसरी ओर उस सब्जी को पकाने के लिए आपको रसोई गैस भी महंगी मिलने वाली है।
वित्त मंत्री ने तो कीमत कम न करने की बात कह डाली लेकिन राज्य सरकार को एक चिट्ठी लिख कर इसे कम करने की अपील की। अब राज्य सरकार ने भी मरहम लगाते हुए लोगों को राहत तो दी है लेकिन क्या इतना काफी है ? एक साल और महंगाई झेलने के लिए आप तैयार रहिए। क्योंकि सरकार को लोगों से ज्यादा सरकारी खजानों की चिंता है। सरकार ने तेल कंपनियों को घाटे से उबारने के लिए डीजल, रसोई गैस और केरोसिन के दाम को तो बढ़ा दिया, लेकिन सरकार टैक्स में ज्यादा कटौती नहीं करने वाली क्योंकि ये सरकारी खजाने का जो सवाल है। पहले ही प्रणब मुखर्जी ने ये साफ कर दिया था कि दाम रोलबैक का तो सवाल ही नहीं पैदा होता है। लेकिन लोगों को राहत देने के लिए राज्य सरकार से उन्होंने टैक्स घटाने की अपील जारी कर दी। वहीं प्रधानमंत्री ने भी साफ कर दिया है कि डीजल, रसोई गैस और केरोसिन के दाम नहीं कम किए जाएंगे। अब जनता को उम्मीद है तो राज्य सरकारों से। हालांकि राज्य सरकार ने इस बाबत कुछ कदम तो उठाए हैं लेकिन वे राहत देने के लिए नाकाफी है। सबसे पहले ममता ने बंगाल की जनता पर ममता बरसाते हुए रसोई गैस की कीमत 16 रुपए घटा दिए। वहीं हरियाणा के लोगों को 70 पैसे सस्ता केरोसिन मिलेगा। हरियाणा सरकार ने केरोसिन पर 5 परसेंट वैट घटा दिया है। वहीं रसोई गैस पर 2008 में ही वैट हटा दिया गया था।
इसके बाद सोमवार को राजधानी दिल्ली में डीजल पर वैट में साढ़े बारह परसेंट की कटौती की गई। इससे दिल्ली में डीजल 37 पैसा सस्ता हो गया। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए रसोई गैस को 40 रुपए सस्ता कर दिया। वहीं केरल में भी डीजल 75 पैसे सस्ता हो गया है तो उत्तराखंड में केरोसिन पर से वैट हटा लिया गया है। इसके अलावा उत्तराखंड में रसोई गैस, डीजल या फिर केरोसिन की बढ़ी कीमत पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। पंजाब सरकार ने भी लोगों को राहत देते हुए डीजल और केरोसिन पर से वैट हटा लिया है। पंजाब में कीमत बढ़ने के बाद डीजल 25 पैसे सस्ता और रसोई गैस ढाई रुपए सस्ता हो जाएगा। महंगाई की मार झेल रही जनता पर सरकार ने डीजल, रसोई गैस और केरोसिन के दाम बढ़ा कर जो घाव दिया है उसका इलाज तो नहीं है वहीं राज्य सरकार मरहम लगाने के नाम पर जो थोड़ी बहुत कीमत कम कर रही है। वो किसी तमाचे से कम नहीं है। सरकार पहले रसोई गैस की कीमत 50 रुपए बढ़ा देती है और राज्य सरकार लोगों को राहत देने के नाम पर ढाई रुपए कम कर देती है। लगातार महंगाई झेल रही जनता को राहत देने के लिए सरकार ने कोई भी बड़ा कदम नहीं उठाया है लेकिन महंगाई कम करने के नाम पर रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ा दी जिससे लोन पर ज्यादा EMI देना पड़ रहा है।
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