लोकपाल को लटकाने का पूरा मसौदा तैयार हो चुका है। रविवार की शाम साढ़े 3 घंटे तक प्रधानमंत्री के घर पर सभी दलों के 50 से ज़्यादा नेताओं की बैठक होती है और उस बैठक में लोकपाल बिल को लाने को लेकर चर्चा कम होती है, उसे अगले 6 महीने तक टाला कैसे जाए इस पर बात ज़्यादा होती है। कम से कम लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का बयान तो यही ज़ाहिर करता है।अण्णा ने जिस बिल के लिए सरकार को मॉनसून सत्र तक का वक़्त दिया था, उसके लिए देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ने शीतकालीन सत्र तक का
वक़्त दे दिया। मज़बूत लोकपाल बिल लाने पर सभी पार्टियां एकमत हैं, लेकिन सरकारी लोकपाल बिल से बीजेपी सहमत नहीं है। हालांकि बीजेपी अभी अपने पत्ते नहीं खोल रही। लेकिन बिल से उसकी असहमति ज़ाहिर कर देती है कि मॉनसून सत्र तक वह सरकार के विरोध में बोलने का मौक़ा नहीं खोना चाहती।
बीजेपी अभी भी प्रधानमंत्री के पद, संसद में सांसदों के व्यवहार और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे में लाने के मुद्दे पर ख़ामोश है। लेकिन देश की तमाम छोटी पार्टियों ने सर्वदलीय बैठक में ही साफ़ कर दिया है कि कम से कम प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना ही चाहिए। सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से पीएम ने यह बयान ज़रूर जारी किया कि देश को मज़बूत लोकपाल की ज़रूरत है, लेकिन उसकी ताक़त ज़्यादा न हो इसके लिए यह भी साफ़ कर दिया गया कि वह संवैधानिक ढाचे के भीतर रहकर और दूसरी संस्थाओं के साथ मिलकर काम करेगा। ज़ाहिर है 42 साल से जो बिल साल दर साल सियासी गलियारे में लटकता जा रहा है, उसे फिर सियासत के तमाम सिपेहसालारों ने मिलकर अगले 6 महीने तक टालने का इंतज़ाम कर दिया है।
sabhaar p7news.com
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