नागों को पालता विबस और लाचार भारत



1३ दिसम्वर २००१ की सुबह संसद भवन के इतिहास में एक काला दिन साबित हुआ , जब कार में सवार आए आतंकी ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगे इस आतंकी घटना में सुरक्षा बल एवं पुलिस के सात जवान शहीद हो गए विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद पर हुए इस हमले की दुनिया भर से कड़ी भत्र्सना हुई फिर सबाल उठने लगे की अगर आतंकवादी सदन के अन्दर प्रवेश कर जाते तो दुनिया के लिए यह पहली घटना होती बाद में हमले के मास्टर मेंड जेस ऐ मुहमद से आतंकवादी अफजल गुरु निकला ट्रायल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई लेकिन मामला आज तक राष्ट्रपति के यहाँ लंबित पड़ा है तो वहीँ देशवासियों के दिल में एक बार फिर यह सबाल घर कर गया है की आखिर हम फाँसी कि सजा पा चुके आतंकवादियों को कब तक जेल मे पालकर उनपर करोड़ों रुपयों को खर्च करते रहेंगे कहीं फिर से यही अफजल गुरु मसूद अजहर कि भांति हमारे लिए सिरदर्द न बन जाये आखिर कब तक हमारा देश इन साँपों को अपनी छाती पर झेलता रहेगा ,आखिर कब तक ?........

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