
हालत यह है कि संसद पर हमले के 10 साल बाद भी सरकार यह बताने की स्थिति में नहीं है कि अफजल गुरू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाई गई मौत की सजा कब तक तामील हो सकेगी।
13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए हमले की साजिश रचने के आरोप में अफजल को सुनाई गई सजा-ए-मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को मुहर लगा दी थी। सजा पर अमल के लिए 20 अक्टूबर, 2006 की तारीख भी तय कर दी गई थी। लेकिन, इससे ठीक पहले 3 अक्टूबर, 2006 को अफजल की पत्नी तबस्सुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल कर दी। पांच साल से अधिक समय गुजरने के बाद भी इस दया याचिका पर कोई फैसला नहीं हो सका है।
दरअसल, राष्ट्रपति ने इस दया याचिका पर गृह मंत्रालय से राय मांगी और गृह मंत्रालय ने उसे दिल्ली सरकार के पास भेज दिया। हैरानी की बात यह है कि दिल्ली सरकार ने चार साल तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया।
गृह मंत्रालय के 15 बार याद दिलाने के बाद अंतत 3 जून, 2010 को दिल्ली के उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना ने अफजल की दया याचिका को निरस्त किए जाने की राय दी। इसे एक साल से अधिक समय तक अपने पास रखने के बाद गृह मंत्रालय ने इस साल 27 जुलाई को राष्ट्रपति सचिवालय को बताया कि अफजल की दया याचिका खारिज की जानी चाहिए।
अब फैसला राष्ट्रपति को करना है। इस फैसले के लिए राष्ट्रपति पर कोई समय-सीमा तय नहीं की जा सकती। पुराने रिकार्ड के मुताबिक दया याचिका पर फैसला लेने में राष्ट्रपति को सबसे कम 18 दिन और सबसे अधिक 12 साल तक का वक्त लगा है।
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